धराली में बने दलदल में 12 लोकेशन पर कई लाशें: मशीनें पहुंच नहीं सकतीं, हाथ से सिर्फ 2 घंटे खुदाई कर रहे रेस्क्यू टीम के जवान

धराली2 घंटे पहलेलेखक: मनमीत

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यह उत्तराखंड के धराली गांव में 5 अगस्त को बादल फटने की घटना का वीडियो है। - Dainik Bhaskar

यह उत्तराखंड के धराली गांव में 5 अगस्त को बादल फटने की घटना का वीडियो है।

प्राकृतिक आपदा में तबाह हुए उत्तराखंड के धराली गांव में हालात बहुत मुश्किल हैं। यहां मलबे में जिंदगी की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। हम रोज सुबह 6:30 बजे चार टीमों में बंटते हैं। हर टीम में 40-40 जवान। फिर मौसम का अपडेट लेते हैं। इसके बाद करीब 80 एकड़ में फैले मलबे में जिंदगी खोजना शुरू करते हैं।

हमने आपदाग्रस्त इलाके को 4 सेक्टर में बांटा है और रोज 8 से 10 जगह खुदाई करते हैं। बड़ी मशीनें नहीं हैं, इसलिए हाथों से खुदाई कर रहे। एक-दो घंटे ही काम कर पाते हैं और तेज बारिश होने लगती है। पूरा इलाका दलदल बन जाता है। इसके बाद कुछ भी करने लायक नहीं बचते। पिछले 14 दिन से यही रुटीन है।

हमें पता है कि मलबे में 12 से 13 लोकेशन पर 20 से 25 फीट नीचे कई लाशें दबी हैं, लेकिन मजबूर हैं। ऐसे मलबे को हटाने के लिए भारी अर्थ मूविंग मशीनों की जरूरत है, लेकिन धराली तक रास्ता नहीं होने के चलते मशीनें नहीं आ पा रहीं। हेलिकॉप्टर से इन्हें ला सकते हैं, लेकिन मौसम बिगड़ा हुआ है।

यह कहना है धराली रेस्क्यू ऑपरेशन के प्रभारी एसडीआरएफ के कमांडेंट अर्पण यदुवंशी का। अर्पण ने भास्कर को बताया कि सब कुछ जानने के बावजूद 14 दिन से लगातार हो रही बारिश के कारण लाशें निकालने का काम नहीं हो पा रहा है। वे और उनकी टीम मजबूर है।

धराली में तबाही के बाद की 2 तस्वीरें…

तीन हजार की आबादी को मुश्किल से मिल रहा राशन

त्रासदी में धराली के अलावा बगोरी, झाला, जसपुर, मुखबा, पुराली और सुखी गांव कटे हुए हैं। यहां की तीन हजार से ज्यादा की आबादी को मुश्किल से दूध, राशन मिल रहा है। गैस आपूर्ति भी बंद है। हेलिकॉप्टर एक बार में जितना सामान ले जाता है, एसडीआरएफ उनकी उतनी ही मदद कर पा रही है।

रविवार को मौसम खराब होने के चलते हेलिकॉप्टर एक बार भी उड़ान नहीं भर पाया। बाकी दिन भी एक या दो चक्कर ही लग पा रहे हैं। हमने वहां इंटरनेट और बिजली बहाल की है, एक वैकल्पिक सड़क बनाई थी, वो फिर टूट गई।

हर्षिल में झील रुकी, इससे भागीरथी कटान कर रही

हर्षिल के पूर्व प्रधान दिनेश रावत ने भास्कर को बताया कि खाने के लिए अभी 7-8 किलो चावल ही मिल रहा है। मसाले, नमक, तेल नहीं दे रहे। सिलेंडर और सूखी लकड़ी भी नहीं है। आसपास दो हेलिपैड हैं। हमने सुझाव दिया था कि राशन के पैकेट बांटिए, ताकि सबकुछ एक ही थैले में मिल जाए। हर्षिल में बनी नई झील का पानी भी रुका हुआ है। इसे तेजी से निकालेंगे तो भटवारी तक तबाही मच सकती है। इस वजह से भागीरथी नदी अब गांव में कटान करने लगी है।

एक ही उम्मीद… कम से कम शव ही मिल जाएं

धराली में 5 अगस्त को आपदा आई थी। 65 लापता हुए। उस वक्त 38 साल के मुकेश पंवार पत्नी विजेता और एक बेटे के साथ होटल में थे। दूसरा बेटा भाई खुशपाल के घर था। आपदा में होटल के साथ तीनों बह गए। खुशपाल ने बताया कि मैं मेले में था, इसलिए बच गया। जैसे ही आपदा का वीडियो आया, मैंने मुकेश को फोन लगाया। एक घंटी बजी और फोन बंद हो गया। उसके बाद कोई संपर्क नहीं हुआ। इसी उम्मीद में यहां बैठा हूं कि शव मिल जाएं, ताकि अंतिम संस्कार कर सकूं।

मानसून ब्रेक के कारण हो रही बादल फटने की घटनाएं

मानसून ब्रेक में बारिश बिल्कुल बंद नहीं होती हैं बल्कि ये हिमालय के तराई के इलाकों में सिमट जाती है। इस दौरान इन इलाकों में बादल फटने जैसी घटनाएं भी होती है, जैसा कि 15 दिनों में धराली और किश्तवाड़ में देखने को मिला।

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Gaurav Thakur
Author: Gaurav Thakur

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